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सुंदर परम्पराएं: सर्दी के मौसम की सौगात

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पोंगल, संक्रांति, उत्तरायण, लोहड़ी और बीहू जैसे त्योहारों के दौरान संपूर्ण भारत में मनाए जाने वाले जश्न एक शानदार उदाहरण हैं हमारे देश की जीवंत परंपराओं और रीति-रिवाजों के। इन सभी त्योहारों का एक सबसे मोहक पहलू यह है कि इस दौरान लोग, खास कर महिलाएं और बच्चे, खूब सज-संवर कर त्योहार मनाते हैं और अपनी-अपनी विरासत और व्यक्तिगत शैली का प्रदर्शन करते हैं। इन अवसरों पर लोग सोने, हीरे, रत्नों से निर्मित उत्तम डिज़ाइन वाले नेकलेस, बालियाँ, अँगूठियाँ, चूड़ियाँ, ब्रेसलेट, चेन, पेंडेंट और झुमके पहनते हैं।


पोंगल: तमिलनाडु में पोंगल त्योहार फसल कटाई का जश्न मनाने के लिए मनाया जाता है। इस त्योहार पर महिलाएं पारंपरिक आभूषण पहनती हैं, जैसे मैंगो माला (आम के आकार वाला नेकलेस), झुमकी बालियां और उत्कृष्ट डिज़ाइन वाली वनकी (बाजूबंद), जो पवित्रता और समृद्धि का प्रतीक हैं। अक्सर बच्चे कान की छोटी बालियां और सुंदर ब्रेसलेट पहनते हैं।


संक्रांति और उत्तरायण: देश के अलग-अलग प्रांतों में उत्साह से मनाए जाने वाले इन त्योहारों पर महिलाएं और सुंदर आभूषण पहनती हैं, जैसे दक्षिण में कसुलपेरु (सिक्कों का नेकलेस), कासिना सारा (सिक्कों का नेकलेस) और मांग टीका (माथे का आभूषण), जबकि गुजरात में उत्तरायण के दौरान महिलाएं कुंदन और चाँदी के सुंदर आभूषण पहनती हैं।


लोहड़ी: पंजाब में, लोहड़ी का त्योहार सर्दी के मौसम की ठंड को काम करने और लोगों में खुशियाँ बाँटने का काम करता है। इस त्योहार पर महिलाएं पारंपरिक पंजाबी आभूषण पहन कर सजती-सँवरती हैं, जैसे सोने की भारी-भरकम बालियाँ, पीपल पट्टी (पारंपरिक पंजाबी आभूषण) और सुंदर डिज़ाइन वाले नेकलेस, जो उनकी सांस्कृतिक विरासत और त्योहार के उत्साह का परिचायक होते हैं।


बीहू: असम के इस जीवंत उत्सव में महिलाएं प्रांत की समृद्ध कलात्मक विरासत का प्रदर्शन करते हुए पारंपरिक असमिया आभूषण पहनती हैं, जैसे जून बिरी (नेकलेस), केरु और गाम खरू (ब्रेसलेट), जिन्हें सोने से बनाया जाता है।


इन विशिष्ट त्योहारों के अलावा भी विविध डिज़ाइनों और सामग्री की मदद से आभूषण बनाए जाते हैं, जो अपनी संस्कृति की अनूठी कहानी बयाँ करते हैं। सोना, जो अपनी शुद्धता और पवित्रता के लिए जाना जाता है, इन त्योहारों में पहने जाने वाले अधिकतर पारंपरिक आभूषणों में इस्तेमाल किया जाता है। हीरे और रत्न चमक और रंगत बढ़ाने का काम करते हैं और इसके अलावा आभूषण को भव्य तथा सुंदर बनाते हैं।


इन उत्सवों में पहने जाने वाले आभूषणों का महत्व केवल उन्हें पहन कर सजना-सँवरना नहीं होता है। बल्कि, ये आभूषण पारिवारिक संबंधों, सांस्कृतिक विरासत और पीढ़ी-दर-पीढ़ी चली आ रही परंपराओं की अभिव्यक्ति हैं। बच्चों के लिए, ऐसे पावन मौकों पर उपहार स्वरूप दिए जाने वाले वे सुंदर आभूषण उनकी मासूमियत, आशीर्वाद और सांस्कृतिक विरासत के प्रतीक होते हैं।


इसके अलावा, इस प्रकार के पेचीदा डिज़ाइन वाले आभूषण बनाने के लिए कुशल कारीगरों की ज़रूरत होती है और जो अपनी कारीगरी से सदियों पुरानी तकनीकों और सांस्कृतिक डिज़ाइनों का संरक्षण करते हुए भारत की सांस्कृतिक धरोहर की रक्षा करते हैं। एक ओर, जहाँ हम विविध भारतीय त्योहार मनाते हैं, वहीं दूसरी ओर, महिलाओं और बच्चों द्वारा पहने जाने वाले आभूषण समृद्ध परंपराओं और सांस्कृतिक विविधता के उदाहरण प्रस्तुत करते हैं। ये आभूषण हमें याद दिलाते हैं कि असली सुंदरता अपनी विरासत और समय के साथ उसमें आए बदलावों को अपनाने में है।


ये त्योहार समृद्धि, आभार और परंपरा के ताने-बाने को बुनते हैं और उत्कृष्ट आभूषणों की शाश्वत चमक के साथ उत्सव तथा भाईचारे की भावना से ओत-प्रोत सांस्कृतिक परिदृश्य को अलंकृत करते हैं।